ग़ज़ल
अपनी चाहत की ,मुकम्मल किताब लाए हैं।
दिल में हमने बसाए, थे वो ख्वाब लाए हैं।।
इस नए दौर में ,मिलती नहीं है ढूंढे से।
आप नज़रों में जो , भरके शराब लाए हैं।।
याद में आपकी हमने किया है अब क्या क्या।
लम्हे - लम्हे का वो , सारा हिसाब लाए हैं।।
लोग ये बात सुनके, आज बहुत हैरां हैं।
आप चेहरे पे लगाने, नकाब लाए हैं।।
क्या खता हो गई जो, इस तरहां नाराजी है।
आप नज़रों में आज , आफताब लाए हैं।।
आपको साथ में देखा, तो यार ये बोले।
आप तो आसमाँ का , माहताब लाए हैं।।
आप रावत का ये ,तोहफा कुबूल फरमाएं।
बड़ी शिद्दत से महकता , गुलाब लाएं हैं।।
रचनाकार
भरत सिंह रावत
भोपाल
7999473420
9993685955
Shalini Sharma
18-Sep-2021 01:36 PM
Very nice
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